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शुक्रवार, 26 जून 2009

मेरे शहर में मानसून

तो आखिरकार मेरे शहर में मानसून ने दस्तक दे ही दी ... यह एक बहुत सुकून देने वाला अहसास है । अभी जब में ये बात आप लोगो से कह रहा हूँ तब भी बाहर बरसात हो रही है और मैं बुद्धू बक्से में रामायण का अन्तिम एपिसोड देख रहा हूँ । दिन भर की थकान के बाद अब मुझे उबासी भी आ रही है साथ ही ठंडी ठंडी हवा मेरे आलस को और बड़ा रही है लेकिन मैं अभी सोना नहीं चाहता हूँ । पता नहीं क्यों लेकिन अभी नहीं...
आज शाम को मैं काम से बाज़ार गया था तब मुझे लगा की क्या कारण है की मैं इस शहर को नहीं छोड़ना चाहता हूँ , ठंडी ठंडी हवा चल रही थी , आसमान में ना अँधेरा था न उजाला एक अलग ही रंग में रंगा हुआ था आसमान मानो आज एक नए रंग की रचना करना चाहता हो जैसे और भोपाल में अब भी कुछ हरियाली आधुनिकता की बलि नहीं चढ़ पायी है तो वो भी अपना योगदान देना एक कर्तव्य के रूप में ले रही थी।
कुल मिला कर एक बहुत अच्छे मौसम की बात मैं यहाँ करना चाहता हूँ जिसका आज मैं साक्षी बना हूँ । अब मैं यही उम्मीद कर सकता हूँ एक भोपाली होते हुए कि जल्द से जल्द इस शहर की शान हमारी बड़ी झील फिर से अपने पुराने स्वरुप में लौट आए और किसी दिन तेज़ बरसात में मैं बड़ी झील के किनारे बैठ कर बरसात होते हुए देख सकूँ।

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