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शनिवार, 18 जनवरी 2014

मदद में स्वार्थ नहीं ढूंढे ...

जनवरी कि एक सर्द शाम को मेरे शहर भोपाल में बादल खूब जम कर बरस चुके थे । मैंने जब देखा कि बारिश और हो सकती है तो मैंने अपना सारा सामान अपने वॉटर-प्रूफ़ बैग में डाला और मैं निकल पड़ा अपने ऑफिस से घर जाने के लिये । मेरे ऑफिस और घर के रास्ते में एक रेलवे क्रासिंग पड़ती है और मुख्य मार्ग से उस क्रासिंग तक जाने के दो रास्ते हैं । एक रास्ता जिसको हम पक्का रास्ता बोल सकते है क्योंकि उस पर बहुत ज्यादा टूटी-फूटी ही सही मगर एक सड़क बनी हुई है और एक मिट्टी का कच्चा रास्ता है जो किसी ने बनाया नहीं है अपने आप बन गया है और जब बारिश न हो तब वो रास्ता पक्के रास्ते से ज्यादा समतल रहता है ।
तो मैं जब उस रेलवे क्रासिंग के करीब पहुँच रहा था तब बारिश के बावजूद मैंने पता नहीं क्यों उस कच्चे रास्ते हो चुन लिया और कुछ दूरी पार करते ही मैं अपनी बाइक समेत कीचड़ में बुरी तरह से फंस गया । मैंने देखा कुछ दूरी पर एक और व्यक्ति फंसा हुआ था और अपनी बाइक कीचड़ से निकालने कि कोशिश कर रहा था । मैं भी अपनी बाइक  निकालने कि कोशिशों में जुट गया । 
जब मैं बाइक  निकालने की कोशिश कर रहा था तभी मुझे उस ओर एक और बाइक आती नज़र आयी । मैंने उसे तुरंत रुकने का इशारा किया और बोला कि," यहाँ मत आओ, बहुत ज्यादा कीचड़ है और तुम बाइक समेत फंस जाओगे " तो उस पर सवार लड़के ने अपनी बाइक तुरंत रोक दी और कुछ दूर पैदल चल कर मेरी तरफ आने लगा । मैंने उसके पहनावे को देख कर कहा कि, "यहाँ मत आओ तुम्हारे जूते और कपडे कीचड़ में ख़राब हो जायेंगे, जैसे मेरे हो गए हैं "। मेरा ये बोलने के बाद जो उस लड़के ने बोला वो मेरे मानस पटल पर बहुत गहरी छाप छोड़ गया, वो बोला कि, " भैया अगर आप मुझे नहीं रोकते तो मेरे जूते और कपडे तो ख़राब होने ही थे, आपके बोलने के कारण मेरी बाइक इस कीचड़ में फंसने से बच गयी और आपकी बाइक भारी है आप अकेले नहीं निकाल पाओगे" ।
फिर उसने मेरी बाइक निकलने में मेरी मदद की, बिना किसी झिझक और परवाह किये । मेरी बाइक निकलवाने के बाद उस लड़के ने उस दूसरे व्यक्ति कि भी मदद कि और उसकी बाइक भी बाहर निकलवा दी । फिर वो लड़का बोला कि, " भैया अब आप पहियों को थोड़ा साफ़ करके घर जा सकते हो", और ऐसा कह कर वो अपनी बाइक ले कर चला गया । वैसे तो मैंने उस लड़के को धन्यवाद बोला था उसकी इस मदद के लिए लेकिन मुझे अब भी लग रहा है कि शायद वो धन्यवाद कम था । इस उहापोह कि स्थिति में मैं उस लड़के से उसका नाम भी पूछना भूल गया और ये बात मुझे शायद पूरी ज़िन्दगी परेशान करेगी । 
एक न भूलने वाला सबक वो मुझे दे गया था कि आप जिस तरह और जितनी मदद कर सकते हो करो और मदद के समय ये मत देखो कि आप जिसकी मदद कर रहे हो वो आपका परिचित है या नहीं ...
धन्यवाद दोस्त... ईश्वर करे कि मैं तुमसे दुबारा मिलने का मौका मिले और धन्यवाद मुझे ये सीखने के लिखे कि मदद निस्वार्थ भाव से भी कि जा सकती है । 
यह घटना मेरे साथ जनवरी १८, २०१४ को बावर्ची ढाबे के पास होशंगाबाद रोड पर शाम ६:३० के आस-पास घटित हुई थी । 

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