सोमवार, 17 दिसंबर 2012
पता नहीं क्या चाहता हूँ ...
आजकल मेरी ज़िन्दगी बड़ी उआह-पोह भरी चल रही है । मुझे नहीं पता क्यों बस चल रही है और मैं भी उसके साथ चलने की कोशिश कर रहा हूँ । कभी-कभी हमें नहीं पता होता है की हम जो कर रहे है वो क्यों कर रहे है और जो कर रहे है, क्या वाकई वो करना चाहते है???
व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है की हम मनुष्य प्रजाति का अनुसरण करते है और हमें निरंतर आगे बढते रहना चाहिए लेकिन मेरे आस-पास बहुत से ऐसे लोग है जो ये सोचते है कि हमें संतुष्ट हो जाना चाहिए । मेरे लिए संतुष्टि का अर्थ अंत है क्योंकि अगर हम आगे नहीं बड़े तो हमारा मनुष्य होना बेकार है ।
मैंने कहीं पढ़ा था कि "खुद पर भरोसा करना सीखना है तो चिड़ियाओं से सीखो क्योंकि जब वो शाम को घर लौटती है तो उनके पास कल के लिए दाना नहीं होता है", मैंने सोचा की मैंने यदि ऐसा किया तो मुझे दिहाड़ी मजदूर ही माना जायेगा और वो तो 26 रूपये में ही जीवन जीता है (भारत सरकार के आंकड़ो के अनुसार )।
ज्ञान की चार बातों के बाद अब हम मुद्दे की बात करते है की मैं क्या कर रहा हूँ या मैं क्या करना चाहता हूँ । मैं क्या करना चाहता हूँ की बात करे तो मुझे यही लगता है की मैं जो कर रहा हूँ कम से कम मैं वो तो नहीं करना चाहता हूँ क्योंकि मैं अंतर्मन से खुश नहीं हूँ मुझे खुश होना पड़ रहा है और मैं खुश होना चाहता हूँ न की पड़ना चाहता हूँ और जब आप खुश होते हो तब ही आप संतुष्ट हो सकते हो।
आजकल खुश होना सीखना पड़ता है लेकिन मैं नहीं मानता की खुश होना सीखने वाली बात होती है, ये तो एक ऐसी प्रक्रिया है जो स्वत होना चाहिए और ये बात आप किसी भी छोटे बच्चे से जान सकते हो । किसी भी छोटे बच्चे को खुश होने के लिए छोटी सी वजह भी बहुत होती है क्योंकि वो बस खुश है और क्यों खुश है वो नहीं जानता है वो तो बस ये देखता है की उसके आस-पास सब खुश है और मुस्कुरा रहे है तो उसको भी यही करना है ।
आप लोग सोच रहे होगे की ये बंदा आखिर बोलना क्या चाह रहा है??? कभी ये बोलता है कभी वो बोलता है, बस मुद्दे की बात ही नहीं कर रहा है, तो मैं आपको बताना चाहता हूँ की मैं इसी उआह-पोह से गुजर रहा हूँ कि आखिर मैं चाहता क्या हूँ???मेरे मन में अनेकों विचार एक साथ चल रहे है और "आर्ट ऑफ़ लिविंग" वालों ने कहा है की विचारों को रोको मत आने दो और मैं उनसे पूछना भूल गया की वो "रोको, मत आने दो" बोल रहे है या "रोको मत, आने दो" बोलना चाह रहे है????
आपको क्या लगता है अगर समय मिल सके तो बताइयेगा ...
व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है की हम मनुष्य प्रजाति का अनुसरण करते है और हमें निरंतर आगे बढते रहना चाहिए लेकिन मेरे आस-पास बहुत से ऐसे लोग है जो ये सोचते है कि हमें संतुष्ट हो जाना चाहिए । मेरे लिए संतुष्टि का अर्थ अंत है क्योंकि अगर हम आगे नहीं बड़े तो हमारा मनुष्य होना बेकार है ।
मैंने कहीं पढ़ा था कि "खुद पर भरोसा करना सीखना है तो चिड़ियाओं से सीखो क्योंकि जब वो शाम को घर लौटती है तो उनके पास कल के लिए दाना नहीं होता है", मैंने सोचा की मैंने यदि ऐसा किया तो मुझे दिहाड़ी मजदूर ही माना जायेगा और वो तो 26 रूपये में ही जीवन जीता है (भारत सरकार के आंकड़ो के अनुसार )।
ज्ञान की चार बातों के बाद अब हम मुद्दे की बात करते है की मैं क्या कर रहा हूँ या मैं क्या करना चाहता हूँ । मैं क्या करना चाहता हूँ की बात करे तो मुझे यही लगता है की मैं जो कर रहा हूँ कम से कम मैं वो तो नहीं करना चाहता हूँ क्योंकि मैं अंतर्मन से खुश नहीं हूँ मुझे खुश होना पड़ रहा है और मैं खुश होना चाहता हूँ न की पड़ना चाहता हूँ और जब आप खुश होते हो तब ही आप संतुष्ट हो सकते हो।
आजकल खुश होना सीखना पड़ता है लेकिन मैं नहीं मानता की खुश होना सीखने वाली बात होती है, ये तो एक ऐसी प्रक्रिया है जो स्वत होना चाहिए और ये बात आप किसी भी छोटे बच्चे से जान सकते हो । किसी भी छोटे बच्चे को खुश होने के लिए छोटी सी वजह भी बहुत होती है क्योंकि वो बस खुश है और क्यों खुश है वो नहीं जानता है वो तो बस ये देखता है की उसके आस-पास सब खुश है और मुस्कुरा रहे है तो उसको भी यही करना है ।
आप लोग सोच रहे होगे की ये बंदा आखिर बोलना क्या चाह रहा है??? कभी ये बोलता है कभी वो बोलता है, बस मुद्दे की बात ही नहीं कर रहा है, तो मैं आपको बताना चाहता हूँ की मैं इसी उआह-पोह से गुजर रहा हूँ कि आखिर मैं चाहता क्या हूँ???मेरे मन में अनेकों विचार एक साथ चल रहे है और "आर्ट ऑफ़ लिविंग" वालों ने कहा है की विचारों को रोको मत आने दो और मैं उनसे पूछना भूल गया की वो "रोको, मत आने दो" बोल रहे है या "रोको मत, आने दो" बोलना चाह रहे है????
आपको क्या लगता है अगर समय मिल सके तो बताइयेगा ...
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