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शुक्रवार, 17 जून 2011

मेरा प्रेक्टिकल न होना...

जब भी मैं अपनी ३१ साला ज़िन्दगी का आंकलन करने की एक असफल सी कोशिश करता हूँ तब-तब मुझे एक बात बहुत परेशान करती है और वो है मेरा प्रक्टिकल न होना...
बचपन से मैं थोडा लीक से अलग चलने वाला बन्दा मानता रहा हूँ खुद को लेकिन जब-जब मैं खुद को अतीत के आईने में देखता हूँ तब-तब मेरा ये भ्रम टूट सा जाता है क्योंकि कहीं ना कहीं जब भी मैंने लीक से हट कर चलने की गुस्ताखी की है मेरे प्रयास को एक अति इमोशनल अंदाज़ में दबा दिया गया है और मैं खुद उस दबाव में आ गया हूँ क्योंकि मैं खुद को प्रेक्टिकल समझता तो हूँ लेकिन असलियत में तो मैं एक इमोशनल व्यक्तित्व का मालिक या यूँ कहे की गुलाम हूँ |
बचपन में जब भी मुझे कोई चाहत होती थी मैं अपने माता-पिता को बताने में हमेशा झिझकता था क्योंकि मेरे मन में हमेशा ये डर रहता था कि कहीं वो ना तो नहीं कर देंगे और अक्सर होता भी यही था | मुझे नहीं पता इस डर के पीछे कारण क्या था लेकिन ऐसा अक्सर होता था |
थोडा बड़ा हुआ तो मैंने आक्रामक रुख अपनाना चालू कर दिया और मन में एक बात को घर करने दिया कि जो आसानी से ना मिले उसे लड़ कर हासिल करो और कई बार मैं सफल भी हुआ लेकिन उस चाहत को पाने कि जो ख़ुशी मुझे महसूस होना चाहिए थी वो मुझे नहीं हो पायी क्योंकि मैं आक्रामक बन रहा था प्रक्टिकल नहीं...
अपने जीवन के कुछ बड़े फैसले मैं लेना चाहता था लेकिन मुझे नहीं लेने दिए गए, हर बार इस समाज कि दुहाई दे कर मेरे अरमानों को नज़र-अंदाज़ कर दिया गया | मैं फिर भी शायद किसी को दोष नहीं दे सकता हूँ क्योंकि गलती मेरी ही थी कि मैंने खुद के बारे में न सोच कर दूसरों के बारे में सोचा और जो खुद के बारे में नहीं सोच सकता है उसके बारे में तो आजकल भगवान्  भी नहीं सोचते है क्योंकि उन्होंने भी आजकल के हिसाब से अपने आप को अपग्रेड कर लिया है और वो भी प्रेक्टिकल हो गए है |
मैं आज जहां हु जिस स्थिति  में हूँ खुद को खुश नहीं रख पा रहा हूँ क्योंकि ये वो लाइफ नहीं है जो मैंने खुद के लिए सोची थी और अभी भी प्रेक्टिकल नहीं हो पा रहा हूँ कि इन परिस्थितियों में भी खुश रहना सीख सकूँ | आज कि दुनिया का एक बहुत महत्वपूर्ण सबक मैंने जो नहीं सिखा है कि या तो इमोशनल हो कर अपने अरमानों को एक संदूक में ताला मार कर गहरे समुन्दर में फेंक दो और वही करो जो दुसरे चाहते है या प्रेक्टिकल बन जाओ | आज कि दुनिया में मेरे जैसे त्रिशंकुओं के लिए कोई जगह नहीं है जिन्हें ये ग़लतफ़हमी है कि वो इमोशनल और प्रेक्टिकल के बीच एक पुल का काम कर सकते है और असल में हम जैसे लोग पुल नहीं त्रिशंकु होते है |

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